कबीर दास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ माता का नाम, पिता का नाम, : Kabir Das Ka Jivan Parichay
कबीर दास का जीवन परिचय: Kabir Das Ka Jivan Parichay
कबीर दास (Kabir Das) एक मशहूर भक्तिकालीन संत, कवि और साहित्यिक थे। वह 15वीं और 16वीं सदी के भारतीय इतिहास में जन्मे और उनकी रचनाएँ अद्वितीयता और सामाजिक सुधार के सन्देश के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी कविताओं में उनके द्वारा व्यक्त किए गए भावनात्मक और आध्यात्मिक विचारों का व्यापक प्रतिष्ठान है।
जीवन परिचय:
कबीर दास का जन्म सन् 1398 ईस्वी में भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के लाल गली में हुआ था। उनके जन्म से लेकर मृत्यु तक के बारे में सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन मान्यता है कि उनकी मृत्यु सन् 1518 ईस्वी में हुई थी।
कबीर दास के जीवन के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा गया है, लेकिन उनकी व्यक्तित्विक जीवनी का निर्माण करना मुश्किल है। वे एक दर्जनों बातें बताते हैं जो उनके जीवन के बारे में ज्ञात हैं, जैसे कि उनके माता-पिता उन्हें किसानों की परिवार में जन्म दिया था, उन्होंने अपने पिता की व्यवसायिक गतिविधियों में अनुभव हासिल किए थे, और वे भक्ति और साधु-संतों के साथ अपना समय बिताने वाले थे।
कबीर दास की रचनाएँ:
कबीर दास ने हिंदी और अवधी भाषा में लिखी गई कई कविताएं छोड़ीं। उनकी कविताओं में संस्कृति, जाति, धर्म, भक्ति और वैचारिक मुद्दों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यहां कुछ प्रमुख कविताओं के नाम दिए गए हैं:
- "कबीरा खड़ा बाज़ार में" (Kabira Khada Bazaar Mein)
- "मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे" (Moko Kahan Dhoonde Re Bande)
- "बुरा जो देखन मैं चला" (Bura Jo Dekhan Main Chala)
- "माटी की मूरत मैली करे" (Mat Ki Murat Mili Kare)
- "दुख में सुमिरन सब करें" (Dukh Mein Sumiran Sab Karein)
- "जब मैं था तब हरि नहीं" (Jab Main Tha Tab Hari Nahin)
ये कविताएँ केवल कुछ उदाहरण हैं, जबकि कबीर दास की रचनाएँ बहुत व्यापक हैं और उनकी कविताएं विभिन्न संग्रहों में संकलित की जाती हैं।
कबीर दास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ: Kabir Das Ka Jivan Parichay
नाम | संत कबीरदास |
अन्य नाम | कबीर साहब, कबीरा, कबीर परमेश्वर |
जन्म वर्ष | सन् 1398 (संवत् 1455 वि॰) |
जन्म स्थान | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु वर्ष | सन् 1518 (संवत् 1575 वि॰) |
मृत्यु स्थान | मगहर, उत्तर प्रदेश |
पेशा | कवि, दार्शनिक, गीतकार, जुलाहा |
काल | भक्तिकाल |
शिक्षा | निरक्षर |
माता का नाम | नीमा |
पिता का नाम | नीरु |
पत्नी का नाम | लोई |
संतान | 2 |
पुत्र का नाम | कमाल |
पुत्री का नाम | कमाली |
गुरु का नाम | स्वामी रामानंद |
रचनाएँ | साखी, सबद, रमैनी |
कबीर दास का जीवन परिचय
कबीर दास की कविताएं विभिन्न विषयों पर लिखी गई हैं। वे द्वैत-अद्वैत, भक्ति, सामाजिक न्याय, अन्तर्मन की शुद्धता, ईश्वर के साथ अनुभूति और मानवीय मानवता जैसे मुद्दों पर गहरा विचार करते हैं। उनकी कविताएँ एक विशेष रूप से सरलता और संगठनशीलता के कारण जानी जाती हैं। इनमें भावनाएं, उपमान, और संक्षेप में व्यक्ति की भावनाओं को प्रकट करने की कला शामिल है। कबीर दास की कविताएं सामाजिक संशोधन की पुष्टि करती हैं और व्यापक रूप से भारतीय साहित्य को प्रभावित करती हैं।
यहां कुछ और प्रमुख कविताएं हैं:
- "माला फेरत जुग भया" (Mala Ferat Jug Bhaya)
- इस कविता में कबीर दास ने धार्मिक अनुष्ठानों और धार्मिक व्यवहार के महत्व को व्यंग्यपूर्ण ढंग से दिखाया है।
- "पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ" (Pothi Padh Padh Jag Mua)
- यह कविता शास्त्रों और पवित्र पुस्तकों के बारे में एक संदेहात्मक दृष्टिकोण को उठाती है। इसमें उन्होंने ज्ञान के महत्व को बताया है जो सीधे मन में प्राप्त किया जाता है, न कि केवल पठन-पाठन से।
- "साधो यह तन जिवत रहे" (Sadho Yah Tan Jivat Rahe)
- इस कविता में कबीर दास ने शरीर के मानवीय अस्तित्व और आत्मा के महत्व को बताया है। उन्होंने शरीर की अनित्यता और आत्मा की अमरता के संबंध में अपने विचार व्यक्त किए हैं।
- "बागी सदा खुदा की" (Bagi Sada Khuda Ki)
- इस कविता में कबीर दास ने ज्ञान के रास्ते पर जाने की प्रेरणा और अवसर का महत्व बताया है। उन्होंने जीवन को एक सदा स्वतंत्र आत्मा के रूप में देखा है और अवधारणा को खुदा से जुड़ा रहने के रूप में व्यक्त किया है।
कबीर दास की रचनाएं उनके जीवन, भक्ति और समाजिक सुधार के दृष्टिकोण को प्रकट करती हैं और उनकी कविताओं का पठन और समझना आत्मिक एवं दार्शनिक विकास को प्रोत्साहित कर सकता है।
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